Monday, September 23, 2019

अब तो दिल उस की मोहब्बत में भी नहीं लगता है

तुम्हारी क्या किसी की सोहबत में भी नहीं लगता है,
अब तो दिल उस की मोहब्बत में भी नहीं लगता है.

इस दिल को जब रोग ही ग़र इश्क़ के हों तो यारों,
दिल घर में क्या फ़िर ज़न्नत में भी नहीं लगता है.

तेरा ग़म रहे तो दिल को फ़िर भी कोई मसअला है,
ये भी ग़र ना हो तो दिल फ़ुर्सत में भी नहीं लगता है.


तुम मेरे लिए ग़र ख़्वाब हो तो फ़िर ख़्वाबों में मिलो,
तुम्हारा होना मुझको हक़ीक़त में भी नहीं लगता है.

यूँ तो मैं जाता तो हूँ कभू कभू मस्जिद "आकाश",
जी मगर उसके बगैर इबादत में भी नहीं लगता है.

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